सब जीवन बीता जाता है
"जय शंकर प्रसाद "
धूप छाँह के खेल सदॄश
सब जीवन बीता जाता है
समय भागता है प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में,
हमें लगा कर भविष्य-रण में,
आप कहाँ छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है
बुल्ले, नहर, हवा के झोंके,
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है
वंशी को बस बज जाने दो,
मीठी मीड़ों को आने दो,
आँख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है
सब जीवन बीता जाता है.
1 टिप्पणी:
वंशी को बस बज जाने दो,
मीठी मीड़ों को आने दो,
आँख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है
संगीत की पारिभाषिक शब्दावली से भी वाकिफ थे श्री जै शंकर प्रसाद जी .आप दोस्त अच्छा काम कर रहें हैं हिंदी साहित्य के इन प्रकाश स्थम्भों का काम वेब पर समेत कर आइन्दा ताकि सनद रहें संततियों के लिए veerubhai1947.blogspot.com ,43,309 ,Silver Wood DR,CANTON,MI,48,188
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वीरुभाई .
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