सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

आजकल

हवा में फिर से घुटन है आजकल
रोज सीने में जलन है आजकल1घुल रही नफरत नदी के नीर में
नफरतों का आचमन है आजकल1कौन-सी अब छत भरोसे मन्द है
फर्श भी नंगे बदन है आजकल1गले मिलते वक्त खंजर हाथ में
हो रहा ऐसे मिलन है आजकल1फूल चुप खामोश बुलबुल क्या करें
लहू में डूबा चमन है आजकल1गोलियाँ छपने लगी अखबार में
वक्त कितना बदचलन है आजकल1जा नहीं सकते कहीं बचकर कदम
बाट से लिपटा कफन है आजकल 

कवि - रामेश्वर दयाल

4 टिप्‍पणियां:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

सुन्दर भावाभिव्यक्ति |

Arvind Mishra ने कहा…

सचमुच यही दशा है !

virendra sharma ने कहा…

आजकल
हवा में फिर से घुटन है आजकल
रोज सीने में जलन है आजकल1घुल रही नफरत नदी के नीर में
नफरतों का आचमन है आजकल1कौन-सी अब छत भरोसे मन्द है
फर्श भी नंगे बदन है आजकल1गले मिलते वक्त खंजर हाथ में
हो रहा ऐसे मिलन है आजकल1फूल चुप खामोश बुलबुल क्या करें
लहू में डूबा चमन है आजकल1गोलियाँ छपने लगी अखबार में
वक्त कितना बदचलन है आजकल1जा नहीं सकते कहीं बचकर कदम
बाट से लिपटा कफन है आजकल

virendra sharma ने कहा…

आजकल
हवा में फिर से घुटन है आजकल
रोज सीने में जलन है आजकल1घुल रही नफरत नदी के नीर में
नफरतों का आचमन है आजकल1कौन-सी अब छत भरोसे मन्द है
फर्श भी नंगे बदन है आजकल1गले मिलते वक्त खंजर हाथ में
हो रहा ऐसे मिलन है आजकल1फूल चुप खामोश बुलबुल क्या करें
लहू में डूबा चमन है आजकल1गोलियाँ छपने लगी अखबार में
वक्त कितना बदचलन है आजकल1जा नहीं सकते कहीं बचकर कदम
बाट से लिपटा कफन है आजकल

बहुत ऊंचे पाए गजल आपने पढवाई है ,हमारे वक्त की यही सच्चाई है .


http://veerubhai1947.blogspot.com/



ram ram bhai
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रविवार, 21 अक्तूबर 2012
Those nagging jerks बोले तो पेशीय फड़क आखिर है क्या ?

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